Sanatan Vedic Yug
सनातन धर्म में चार युग होते है। ये चार युग है - सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग।
देवताओं के इन दिव्य वर्षो के आधार पर चार युगों की मानव सौर वर्षों में अवधि इस तरह है –
सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)
त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)
द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)
कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)
युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई की जानकारी, युग के प्रमाण, अवतार इत्यादि की जानकारी कुछ इस तरह है -
सतयुग -
पूर्ण आयु - 172800 वर्ष
मनुष्य की आयु - 100000
लंबाई - 32 फीट
तीर्थ - पुष्कर
पाप - 0
पुण्य -20
अवतार - मत्स्य, कुर्म, वाराह, नृसिंह
मुद्रा - रत्न
पात्र - स्वर्ण
त्रेतायुग -
पूर्ण आयु - 12,96,000
पूर्ण आयु - 12,96,000
मनुष्य की आयु - 10,000
तीर्थ - नैमिषारण्य
पुण्य - 15 विश्वा
अवतार - वामन, परशुराम, राम
मुद्रा – स्वर्णपात्र – चाँदी
मनुष्य की आयु - 1000
लम्बाई - 11 फीट
पुण्य - 10
अवतार - कृष्ण, बलराम
मुद्रा - चांदीलम्बाई - ५.५ फिट (लगभग) [३.५ हाथ]
तीर्थ - गंगा
पाप - 15
पुण्य - 5
अवतार - कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर)
मुद्रा -लोहा84 लाख योनि व्यवस्था कुछ इस प्रकार है -
वृक्ष - 27 लाख
कीट (क्षुद्रजीव) - 11 लाख
पक्षी - 10 लाख
जंगली पशु - 23 लाख
मनुष्य - 4 लाख
और पड़े.....
'कोरोनावायरस संबंधित विशेष तथ्य'
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