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ग्रह - रत्न की पूरी जानकारी


ग्रह और रत्न (Planets and Gems)


Planets and Gems
Planets and Gems, ग्रह और रत्न


मानव जीवन निरंतर पल प्रतिपल ग्रहों से ही संचालित होता है और यह समस्त ग्रह आकाश मंडल में निरंतर अपनी धुरी पर घूमते हुए निर्दिष्ट समय में पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। 
 Table of content:•ग्रह रत्न की पूरी जानकारी - graha ratna ki puri jankari
कौन से ग्रह के लिए कौन सा रत्न पहनना चाहिए
•  कौन से ग्रह के लिए कौन सा रत्न सही है

प्रत्येक ग्रह की स्वयं की किरणें या  रश्मियाँ होती है। पृथ्वी के चारों ओर घूमते समय न्यूनाधिक रूप में इन ग्रहों की रश्मियाँ पृथ्वी पर पड़ती रहती हैं। उदाहरण स्वरूप  ग्रीष्म काल में सूरज ठीक हमारे ऊपर होता है, अतः उसकी किरणें भी सीधी पृथ्वी पर पड़ती है। इन सीधी किरणों का पृथ्वी वासियों पर भी प्रभाव पड़ता है। वह गर्मी से व्याकुल हो जाते हैं और गर्मी के कारण जी घबराने लगता है। इसके विपरीत सर्दी की ऋतु में जब सूरज तिरछा होता है तो उससे उत्पन्न किरणें भी  पृथ्वी पर सीधी ना पढ़कर तिरछी पड़ती है। फलस्वरूप उसकी तीव्रता का आभास भी मनुष्य को कम ही होता है। इसी प्रकार निर्दिष्ट पथ पर चक्कर लगाते प्रत्येक ग्रह की किरणें पृथ्वी पर पड़ती रहती है। जो ग्रह ठीक ऊंचा होता है उसकी किरणें भी तीव्रता से मनुष्य पर पड़ती है और जो ग्रह तिरछा या दूर होता है उसकी किरणें भी कम उष्ण और निम्न रूप से मानव को प्रभावित कर पाती है।
इस प्रकार जब बालक मां के गर्भ से पहले पहल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो उस समय वह निर्विकार और अरश्मि युक्त होता है, परंतु ज्योंही वह जन्म लेकर  पृथ्वी के  वायुमंडल के संपर्क  में आता है  त्योंही उस समय  समस्त ग्रहों की रश्मियों का प्रभाव उसके निर्विकार शरीर पर छा जाता है। उस समय किस ग्रह की रश्मियाँ घनीभूत होती हैं, उस ग्रह का प्रभाव उस बालक पर सर्वाधिक रुप में होता है और जिस ग्रह की रश्मियाँ
 बिरल या हल्की होती है, उस ग्रह का प्रभाव उस बालक पर कम होता है। इस प्रकार पहले पहल बालक का जिन रश्मियों से आच्छादन होता है, उसका प्रभाव उम्र भर रहता है।

जन्म कुंडली भी एक प्रकार से तात्कालिक आकाश मंडल का खाका ही तो है जिससे सहज ही ज्ञात किया जा सकता है कि बालक के जन्म के समय कौन सा ग्रह किस स्थान पर था और उनकी राशियों का कितना प्रभाव बालक के जन्म स्थल पर पड़ रहा था। जिस प्रकार शारीरिक स्वच्छता के लिए यह जरूरी है कि खाद्य, जल, लवन, विटामिन इत्यादि का उचित अनुपात शरीर में  हो इसी प्रकार मानव के श्रेष्ठता एवं सफलता के लिए भी यह जरूरी है कि उसके जीवन पर समस्त ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व हो क्योंकि प्रत्येक ग्रह जीवन के किसी मुख्य आयाम का प्रतिनिधित्व करता है। एक उत्तम जीवन के लिए आवश्यक है कि उसका शरीर स्वस्थ हो, भाग्य प्रबल हो, संतान एवं पत्नी का पूर्ण सुख हो तथा आय के उचित साधन हो जिससे ग्रह सुख सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। इस प्रकार शरीर, पुत्र, पत्नी, विलासमय जीवन, आय, भाग्योदय आदि के अलग-अलग कारक होते हैं और इन समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव जीवन की श्रेष्ठता के लिए आवश्यक हैं, इनमें से एक भी ग्रह की दुर्बलता मानव जीवन की अपूर्णता ही कही जाएगी।

ऐसी स्थिति में उस दुर्बल ग्रह की पुष्टता के लिए उससे संबंधित धातु एवं रत्न पहना जाता है। ग्रह से संबंधित रत्न धारण करने से ऐसा समझना चाहिए कि वह कुंडली में अब अधिक बलवान हो गया है और उससे संबंधित जो वस्तुएं या कारक है उनकी वृद्धि उसके जीवन में संभव होगी। वैज्ञानिक रूप से इसका तात्पर्य है की एक विशिष्ट रत्न में एक विशिष्ट ग्रह की रश्मियों को सूखने की प्रबल शक्ति है और जिस प्रकार एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में विद्युत प्रवाहित की जा सकती है उसी प्रकार वह रत्न उन विशेष रश्मियों को सोख कर मानव शरीर में प्रवाहित कर देता है। यदि किसी के शरीर में विटामिन की कमी हो और इस वजह से कमजोर हो रहा हो तो विटामिन की गोलियां लेने से उस कमी की पूर्ति हो जाती है और व्यक्ति स्वस्थ एवं सबल बन जाता है। इसी प्रकार विशिष्ट रत्नों के माध्यम से विशिष्ट रश्मियों को लेने से मानव जीवन सुखी एवं आनंदमय हो जाता है।

ग्रह और उनसे संबंधित धातु और रत्न का विवरण निम्नलिखित हैं

 ग्रह             धातु                    रत्न
 सूर्य             स्वर्ण                   मानिक्य
 चंद्रमा          चांदी                   मोती
 मंगल           स्वर्ण                   मूंगा
 बुध             स्वर्ण/कांसी           पन्ना
 बृहस्पति       चांदी                   पुखराज                               शुक्र             चांदी                  हीरा
 शनि             लोहा या शीशा     नीलम
 राहु              पंचधातु              गोमेदक
 केतु             पंचधातु              वैदूर्य/लहसुणिया


पंचधातु में स्वर्ण,चांदी, तांबा, कांसी और लोहा इन पांच धातुओं का बराबर भाग लेकर जो पदार्थ बनाया जाता है उसे पंचधातु कहते हैं। इस पंच धातु की अंगूठी भी तैयार की जाती है।

ग्रह और उससे संबंधित धातु और रत्न का ज्ञान होने के बाद यह आवश्यक है कि रत्नों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाए तथा उसके अंग्रेजी नाम भी ज्ञात हो।


रत्न                 संस्कृत नाम        अंग्रेजी नाम         
मानिक            पदमाराग             Ruby           
मोती               मुक्तक                 Pearl           
मूंगा                विद्रुम प्रवाल         Coral           
पन्ना                मरकथ                Emerald   
पुखराज           पुष्पराग              Topay
हीरा                वज्रमणि              Diamond
नीलम              इन्द्रनील              Sapphire Turgurse   
गोमेद               गोमोदेक             Zircon     
लहसुनिया         वैदुर्य                  Cat's Eye Stone


ज्योतिष के  अनुसार राशि धारकों को कौन से रत्न या उप-रत्न धारण करने चाहिए?

ज्योतिष के द्वारा मान्य 12 राशियां और उनसे प्रभावित रत्नों का ज्ञान भी आवश्यक है। नीचे राशियां एवं उनसे संबंधित एवं प्रभावित रत्नों या उप रत्नों का परिचय दिया जा रहा है -


मेष राशि         त्रिकोण प्रबाल
वृष राशि         हीरा व षटकोण पन्ना
मिथुन राशि      पंचकोण पन्ना व मोती
कर्क राशि        गोल मोती व नीलम
सिंह राशि         गोल माणिक
कन्या राशि        पन्ना
तुला राशि         सफेद पुखराज
वृश्चिक राशि      प्रवाल
धनु राशि          पीला पोखराज
मकर राशि        नीलम
कुंभ राशि          वैदुर्य (फिरोजा)
मीन राशि          गोमेदक

मनुष्य के जन्म महीने के अनुसार कौन से रत्न धारण करने चाहिए?
कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपनी जन्म तारिख और समय मालूम नहीं होता है। इसलिए महीने के अनुसार सम्बन्धित रत्न धारण करने चाहिए -
जनवरी         मूंगा
फरवरी         एमेथिस्ट
मार्च             एक्वामरीन
अप्रैल           हीरा
मई               पन्ना
जून              सुलेमान
जुलाई           माणिक
अगस्त           गोमेदक
सितम्बर         नीलम
अक्टूबर         चन्द्रकान्त
नवम्बर           पुखराज
दिसम्बर          वैदूर्य  मणि

रत्न संबंधित धातु की अंगूठी में ही पहना जाए तो ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। अंगूठी के जिस भाग में रत्न जड़ा जाए
वह स्थान खोखला होना चाहिए और उसमें रत्न इस प्रकार जड़ा जाना चाहिए कि वह रतन शरीर को भी स्पर्श करता रहे। तभी उस रत्न का स्थाई प्रभाव होता है।




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