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सनातन धर्म

सनातन धर्म (Sanatan Dharma) 



सनातन धर्म
सनातन धर्म

ऊँ सनातन धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं बल्कि सनातन परम्परा का सबसे पवित्र शब्द है। सनातन धर्म (हिंदू धर्म, वैदिक धर्म) अपने मूल रूप हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म एक विज्ञान सम्मत धर्म है। 

वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। सनातन का अर्थ है साश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला' अर्थात जिसका ना आदि है और ना अंत है। 
सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है जो किसी जमाने में पूरे वृहत्तर भारत या भारतीय उपमहाद्वीप तक व्याप्त रहा है। 
विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मांतरण के बाद भी पूरे विश्व में आज भी सनातन धर्म अस्तित्व में है।
इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी सनातन धर्म में आस्था रखते हैं। सिंधु नदी के पार के वासियों को ईरानवासी हिंदू कहते थे, जो 'श' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिंदू और उनके धर्म को हिंदू धर्म  कहने लगे। भारत के अपने साहित्य में हिंदू शब्द कोई 1000 वर्ष पूर्व ही मिलता है, उसके पहले नहीं। लेकिन हमारी सनातन संंस्कृति लाखों साल पुरानी है।

सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूल आधार है क्योंकि सभी धर्मों सिद्धांतों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।

सनातन का सामान्य रूप से मतलब होता है ‘जो हमेशा से मौज़ूद रहा है’ यानि जिसकी उत्पत्ति और जन्म से किसी का कोई सरोकार न हो और वह वस्तु या व्यक्ति या सिद्धांत नित्य हो। यानि अजन्मा जैसा धर्म या जीवन पद्धति, जिसके विकास की धारा अनवरत रही हो। आप किसी भी एक ऐसे देवता का नाम नहीं ले सकते, जो हिंदू सनातन परंपरा का जन्मदाता हो। ऐसा कोई शख्स ये दावा नहीं कर सकता कि उसने अपने प्रयत्नों से सनातन धर्म का निर्माण किया हो।
दुनिया के सभी धर्म किसी न किसी व्यक्ति की विचारधारा से उत्पन्न हुए हैं। इस्लाम, ईसाई, बौद्ध, जैन, जरथुस्त्रियन, पारसी आदि धर्मों की मान्यताएं मूलतः किसी न किसी पैगंबर या ईश्वरीय दूतों के संदेशों पर निर्भर करती हैं। अकाट्य रूप से उनसे जुड़े सिद्धांत उस दूत विशेष की क्रियाविधि से प्रभावित होते हैं, उनकी जीवनशैली ही इनके लिए आधारबिंदु का कार्य करती है।    
किंतु यही बात सनातन परंपरा पर बिल्कुल भी लागू नहीं होती। ये एक प्रवाहमय विचारधारा, सरल जीवन पद्धति, नैरंतर्य की सरिता के समान विशाल और गहरी है। न आदि न अंत, अविनाशी, उस सर्वशक्तिमान के समान अजेय और निरंतर है।     

सनातन धर्म की मुख्य मान्यता -


  • वेदों में ईश्वर को निराकार बताया गया है और पुराणों में उनकी आकार रूप रंग की व्याख्या की गयी है। सनातन धर्म साकार और निराकार रूप में ईश्वर के अस्तित्व पर जोर देती है। आप किसी भी ईश्वर की पूजा करते हो। पूजा परब्रहम परमात्मा की ही होती है।
  • आत्मा को अमर बताया गया है वो न ही जन्म लेती है ना ही मरती है।
  • आत्मा या तो दूसरी योनी में जाती है या मोक्ष को प्राप्त करती है। यह सब उसके किये गये कर्मो पर निर्भर करता है।
  • ईश्वर की पूजा करने के पीछे किसी तरह का डर नही , अपितु उसका धन्यवाद करना है।
  • जब जब पाप चरम पर होगा तब ईश्वर अपने अवतार धारण करेंगे। उनके लिए अवतार अधर्म का नाश करेंगे।
  • पुण्य दूसरो की सेवा में है और किसी को सताना पाप है।
  • यदि आप किसी जीवमात्र की सेवा करते है तो यह ईश्वर की सेवा के तुल्य ही है।
  • लोभ, लालच, क्रोध, सांसारिक मोह माया से उठकर जीवन जीना ही धर्म है।
  • हिन्दू उपनिषदों के अनुसार सबसे बड़ी शक्ति परब्रह्म परमेश्वर है जिसे आप शिव कहे, विष्णु कहे या शक्ति कहे।

सनातन धर्म के पांच सम्प्रदाय -

प्राचीन काल में हिन्दू सनातन धर्म पाँच सम्प्रदाय पर चलता था। यह पांच महान हिन्दू देवी देवता के आधार और पूजा पर बना था।
  1. भगवान गणेश को मानने वाले – गाणपत्य सम्प्रदाय
  2. शिव शंकर की भक्ति करने वाले – शैव सम्प्रदाय
  3. भगवान विष्णु के भक्त – वैष्णव सम्प्रदाय
  4. सूर्य की पूजा करने वाले – सौर सम्प्रदाय
  5. माँ शक्ति के उपासक –  शाक्त सम्प्रदाय
समय के साथ साथ ये सभी सम्प्रदाय यह एक मत होने लगे। वे मानने लगे की आप किसी भी देवी देवता की पूजा करे ,  आपके आराध्य परब्रहम की पूजा हो जाएगी। कालांतर में दो ही सम्प्रदाय ही रहे है वो है शैव और वैष्णव।

____वेद ____


वेद दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ है। इसी के आधार पर दुनिया के अन्य पंथों और मजहबों की उत्पत्ति हुई जिन्होंने वेदों के ज्ञान को अपने अपने तरीके से अलग अलग भाषा में प्रचारित किया। 
ईश्वर द्वारा ऋषियों और मुनियों को सुनाई ही बातों पर ही वेद की सृष्टि हुई है।

वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है। इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है। वेदों में ब्रह्म यानि ईश्वर, देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, चिकित्सा, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।

मानव सभ्यता का सबसे पुराना और प्राचीन ग्रंथ है वेद।

वेदों को चार भागों में बांटा गया है - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्व वेद और स्थापत्य वेद क्रमश ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के ही उप वेद है।

ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

• ऋग्वेद -  ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। 
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्यात्मक है। इसके 10 मंडल (अध्याय) में 1028 सूक्त है जिसमें 11 हजार मंत्र हैं। ऋग्वेद की 5 शाखाएं हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।
इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है।  ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है।

• यजुर्वेदयजुर्वेद का अर्थ है गतिशील आकाश। 
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान। ब्राह्मण, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान। यह वेद गद्य मय है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र हैं। इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।

• सामवेदसाम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। सामवेद गीतात्मक यानि  गीत के रूप में है।
सामवेद ही संगीत का मूल शास्त्र माना गया है। 1824 मंत्रों के इस वेद में 75 मंत्रों को छोड़कर शेष सब मंत्र ऋग्वेद से ही लिए गए हैं।

• अथर्वदेवअथर्व का अर्थ होता है अकंपन। 
ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि काजिक्र है। इसके 20 अध्यायों में 5687 मंत्र है। 

सनातन धर्म विश्व का एकमात्र धर्म जो विज्ञान पर आधारित है। यह धर्म विज्ञान और प्रकृति पर आधारित है। इसके सारे नियम और कर्म कांड विज्ञान पर आधारित है। 

एक गोत्र में विवाह नहीं करना चाहिए -

वैज्ञानिक कारण : Genetic (अनुवांशिक) बीमारी न हो  तो इसका एक ही इलाज है ‘Separation of Genes’ अर्थात अपने निकटतम रिश्तेदारों में विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि नजदीकी रिश्तेदारों में Genes separation अर्थात विभाजित नहीं हो पाता और Genes linked बीमारियां जैसे Haemophloea, colour blindness और Albonism होने की शत-प्रतिशत संभावना होती है। सुखद आश्चर्य का विषय यह है कि सनातन हिंदू धर्म में हजारों वर्ष पहले Genes और DNA के बारे में कैसे लिखा गया? हिंदू परम्परा में कुल सात गोत्र होते हैं। एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते, जिससे Genes Separate (विभाजित) रहे। आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा कि सनातन हिंदू धर्म ही विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो विज्ञान पर आधारित है।

कर्ण छेदन की परम्परा -

भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।वैज्ञानिक कारण : दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है। जबकि डाक्टरों का मानना है कि इससे बोलने की क्षमता बढ़ती है तथा कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नसों का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

माथे पर कुमकुम/तिलक -

महिलाएं तथा पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।वैज्ञानिक कारण :  आंखों के मध्य में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते समय जब अंगूठे या उंगली से दबाव पड़ता है तब चेहरे की त्वचा की रक्त संचार करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोशिकाओं (शेल्स) तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

जमीन पर बैठ कर भोजन -

भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।
वैज्ञानिक कारण : पालथी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस अवस्था में बैठने से मस्तिष्क शांत रहता है और भोजन करते समय अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस अवस्था में बैठते ही स्वयं दिमाग से एक संकेत पेट तक पहुंच जाता है कि भोजन के लिए तैयार हो जाएं।

हाथ जोड़ कर नमस्कार करना -

हमारे समाज में जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं। 
वैज्ञानिक कारण : जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है तब एक्यूप्रैशर के कारण उसका सीधा प्रभाव हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, जिससे सामने वाले व्यक्ति को हम अधिक समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह है कि हाथ मिलाने (पश्चिमी सभ्यता) के बजाय यदि आप नमस्कार करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते।

भोजन का आरंभ तीखे से और विराम मीठे से  -

जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरूआत तीखे और अंत मीठे से होता है।
वैज्ञानिक  कारण : तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती।

तुलसी पौधे की पूजा -

तुलसी पौधा को हमारे ग्रंथों में शुभ माना गया है। 
वैज्ञानिक कारण - तुलसी पौधा  एंटी बैक्टीरिया है। साथ ही यह पौधा भी आक्सीजन स्तर बढ़ाता है और मिथेन के स्तर को भी कम करता है। यह हवा को शुद्ध करने में सहायक होता है। यह बहुत सारे बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है।

पीपल की पूजा -

अधिकतर लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।
वैज्ञानिक कारण : इसकी पूजा इसलिए की जाती है ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों में श्रद्धा बढ़े और उसे काटे नहीं। पीपल ही एकमात्र ऐसा पेड़ है जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है। इसलिए निरंतर आक्सीजन प्रदान करने वाला  विश्व का एकमात्र पौधा है।

उत्तर की ओर सिर करके सोना -

कोई उत्तर की ओर पैर करके सोता है तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आएंगे, भूत-प्रेत का साया आ जाएगा आदि।
वैज्ञानिक कारण : जब हम उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में उपस्थित आयरन अर्थात लौह दिमाग की ओर संचालित होने लगता है। इससे अल्जाइमर, पार्किंसन या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा तथा रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

सूर्य अर्घ्य (नमस्कार) -

हिंदू मान्यता में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।
वैज्ञानिक कारण : पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं तब हमारी आंखों की रोशनी अच्छी होती है।

सिर पर चोटी -

हिंदू धर्म में सिर पर चोटी (शिखा) रखने की परम्परा है।
वैज्ञानिक कारण : जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें मिलती हैं। इससे दिमाग स्थिर रहता है और मनुष्य को क्रोध नहीं आता। सोचने की क्षमता बढ़ती है।

व्रत रखना -

कोई भी पूजा-पाठ या त्यौहार होता है तो लोग व्रत रखते हैं।वैज्ञानिक कारण : व्रत रखने से पाचन क्रिया अच्छी होती है और फलाहार लेने से शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है अर्थात उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है। व्यक्ति को हृदय संबंधी रोग, मधुमेह आदि भी जल्दी नहीं लगते। 


चरण स्पर्श -

हिंदू मान्यता के अनुसार जब आप किसी बड़े से मिलें तो उसके चरण स्पर्श करें। यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं ताकि वे बड़ों का आदर करें।
वैज्ञानिक कारण : मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉस्मिक ऊर्जा का प्रवाह कहते हैं। इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है या तो बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक या फिर छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।


क्यों लगाया जाता है सिंदूर -

विवाहित हिंदू महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।
वैज्ञानिक कारण : सिंदूर में हल्दी, चूना और पारा होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। चूंकि इससे यौन उत्तेजनाएं भी बढ़ती हैं इसलिए विधवा औरतों के लिए सिंदूर लगाना वर्जित है। इससे स्ट्रैस कम होता है।


तुलसी के पौधे की पूजा -

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है। सुख-शांति बनी रहती है।
वैज्ञानिक कारण : तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है। यदि घर में तुलसी का पौधा होगा तो पत्तियों का भी प्रयोग होगा जिससे बीमारियां दूर होती हैं।



तांबे के बर्तन में पानी रखना  -

तांबे के बर्तन में पानी रखने से पानी शुद्ध होता है क्योंकि तांबा में पानी को शुद्ध करने की शक्ति होती है। इसीलिए हमारे सनातन धर्म में तांबे के लोटे में पानी लेकर सूर्य को प्रणाम किया जाता है।


Sanatan Dharma is the only Dharm of the world which has no founder. Sanatan Dharma is the ancient religion in the world. As per Swamy Chinmayananda there is no particular founder for Sanatan or Hinduism as it is not an outcome of one personality's knowledge. 
Let me put the same question to you.
Who is the founder of chemistry?
Who is the founder of physics? 
you cannot answer because these are science  which had contribution from plenty of scientists. In Hinduism our Rishis snd Munis were the scientist, devotees
Swami Chinmayanand said that if you ask a Christian to give book on Christianity he gives you Bible. If you ask a 'Muslim' to give book on Islam he gives you Quran. And if you ask a 'Hindu' to give book on Hinduism he will say, "Welcome to my library". Sanatan dharma is based on large numbers of scriptures, Knowledge, nature and science.
Sanatan Dharma term used to denote the eternal that is is beyond the time or or absolute set of duties. Sanatan Dharma is eternal. It is the universal truth which substance the very core of universe and it's being however if we consider the vedic principles the age of Sanatan Dharma can be deduced. According to vedic mathematics the age of Sanatan Dharma is estimated to be approximately 155.52 trillion years. J 
Sanatan Dharma is an internal order code of ethics, a way of living which helps humans to attend the ultimate goal of the life that is enlightment, Liberation or Moksh.
Sanatan Dharma is not a religion only, but it also provides its followers a coherent and rational view of reality. It is the ancient most culture which presently holds the the status of ping the socio-religious and spiritual tradition of more than a billion of Earth inhabitants.
There were 46 ancient civilizations and cultures in the world. 45 ancient civilizations head disappeared. Only one civilization of Sanatan or Hinduism is still exist in the world.
Sanatan Dharma is anaadi that i.e. beginless and Ananta i.e. endless meaning that beyond the time and it is eternal.
Sanatan Dharma is in fact the natural law of the principle of reality that is at the basis of the design of the universe and in this sense it is natural, ancient and eternal.
Freedom of belief and expression add the root of the Sanatan Dharma. Sanatan Dharma has no founder. Of course the tradition was induced by the contribution buy a long line of divine incarnations, saints, sages and 
Spiritual personalities. 
Therefore no one have been given the credit of founding Sanatan Dharma. As it is eternal in its origin it is called "Apaurusheya" means that which is not made by men. While the 'status of the Vedas' that are eternal scriptures and are not authored by anyone. The Sages, Saints only gather these divine vibrations through meditation and revealed to the human society.


(Sanskrit - अपौरूषेय, apayruseya, lit. means "not of a man"), meaning Superhuman or impersonal, authorless, is a term used to describe the Vedas, the earliest scripture in Hinduism.)

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